इश्क़ में ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ दरकार है बे-ज़बानी की ज़बाँ दरकार है दैर-ओ-का'बा से नहीं कोई ग़रज़ मुझ को तेरा आस्ताँ दरकार है वहशत-ए-दिल का हो कोई तो इलाज सोहबत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ दरकार है मेरे दिल की सम्त वो नज़रें उठीं बिजलियों को आशियाँ दरकार है शौक़ से आ कर मिरे दिल में रहें आप को ख़ाली मकाँ दरकार है इन घनी ज़ुल्फ़ों का साया कीजिए धूप में इक साएबाँ दरकार है मैं इसी दुनिया को कहता हूँ बहिश्त शैख़ को बाग़-ए-जिनाँ दरकार है वारदात-ए-क़ल्ब है मुझ को अज़ीज़ आप को हुस्न-ए-बयाँ दरकार है राज़-ए-दिल किस पर करूँ मैं आश्कार कोई दिल का राज़दाँ दरकार है ना-शनासान-ए-अदब मेरे हरीफ़ सोहबत-ए-दानिश-वराँ दरकार है ज़िंदगी से हो गया है दिल उचाट फिर हदीस-ए-दिलबराँ दरकार है हासिदों में घिर गया हूँ ऐ 'बहार' फ़िक्र-ओ-फ़न का क़द्र-दाँ दरकार है