क्या गुल खिलाए देखिए तपती हुई हवा मस्मूम हो गई है महकती हुई हवा ये चीथडों में फूल ये सरगर्म-ए-कार लोग ये दोपहर की धूप ये जलती हुई हवा ज़िंदा वही रहेगा जिसे हो शुऊ'र-ए-ज़ीस्त कहती है रोज़ रंग बदलती हुई हवा बादल घिरे तो और भी शो'ला-फ़िशाँ हुई फूलों की पत्तियों को झुलसती हुई हवा तूफ़ान-ए-गर्द-ओ-बाद से सँवला न जाएँ लोग फिर रुक गई है शहर में चलती हुई हवा कुम्हला न जाए गुलशन-ए-शाम-ओ-सहर 'हज़ीं' मुद्दत से चल रही है सुलगती हुई हवा