क्या हिना ख़ूँ-रेज़ निकली हाए पिस जाने के बाद बन गई तलवार उन के हाथ में आने के बाद जाम-ए-जम की धूम है सारे जहाँ में साक़िया मानता हूँ मैं भी लेकिन तेरे पैमाने के बाद शुक्रिया वाइज़ जो मुझ को तर्क-ए-मय की दी सलाह ग़ौर मैं इस पर करूँगा होश में आने के बाद शम्अ माशूक़ों को सिखलाती है तर्ज़-ए-आशिक़ी जल के परवाने से पहले बुझ के परवाने के बाद आश्ना हो कर बुतों के हो गए हक़-आश्ना हम ने काबे की बिना डाली है बुत-ख़ाने के बाद मैं करूँ किस का नज़ारा देख कर तेरा जमाल मैं सुनूँ किस का फ़साना तेरे अफ़्साने के बाद शम-ए-महफ़िल का हुआ ये रंग उन के सामने फूल की होती है सूरत जैसे मुरझाने के बाद सच ये कहते हैं कि हँसने की जगह दुनिया नहीं चश्म-ए-इबरत हैं चमन के फूल मुरझाने के बाद फ़िक्र ओ काविश हो तो निकलें मअ'नी-ए-रंगीं 'जलील' लाल उगलती है ज़बाँ ख़ून-ए-जिगर खाने के बाद