क्या हो तस्कीन जो हो तेरी सुकूनत दिल में रहे आग़ोश में या प्यार की सूरत दिल में मौत चाहूँ तो करूँ सोज़-ए-मोहब्बत का इलाज क्या रहेगा न रहेगी जो हरारत दिल में दिल-नशीं है जो मुझे तालिब-ए-इज़्ज़त होना छुप के बैठा है कोई साहब-ए-इज़्ज़त दिल में दिल को सब लोग ये कहते हैं ख़ुदा का घर है मैं समझता हूँ कि है तेरी अमानत दिल में सुन रहा हूँ वो अयादत के लिए आते हैं आज है पुर्सिश-ए-आमाल की हैबत दिल में तौबा तौबा मैं समझता था कि दिल है बेताब ख़ुद वो बेताब है जिस की है सुकूनत दिल में दिल में रहने का तुझे हक़ तो है लेकिन ऐ शोख़ काश होती तिरे चेहरे की मतानत दिल में जानते हैं मिरी बे-राह-रवी के अस्बाब मानते हैं मुझे यारान-ए-तरीक़त दिल में ठन गई थी तिरे अख़्लाक़ की बेजा तारीफ़ अब न आता तो ये आई थी शरारत दिल में है अभी तक तो फ़क़त शिकवा-ए-दुश्मन ऐ दोस्त कहीं पैदा न हो कुछ और शिकायत दिल में चाहता हूँ जिसे बन जाए अगर वो साक़ी बढ़ती जाए हवस-ए-कौसर-ओ-जन्नत दिल में ज़ौक़-ए-दीदार भी क्या चीज़ है अल्लाह अल्लाह मेरी आँखों में बसारत है बसीरत दिल में काश मिन-जुम्ला-ए-आज़ार-ए-मोहब्बत निकले कार-फ़रमा नज़र आती है जो क़ुव्वत दिल में हैं अभी तक तुम्हें दुनिया के मज़े याद 'सफ़ी' आशिक़ी करते हो रख कर ये मलामत दिल में