क्या हुआ कब कहाँ नहीं मालूम कितने उजड़े मकाँ नहीं मालूम मुझ से गुलशन में बाग़बाँ इतना क्यूँ हुआ बद-गुमाँ नहीं मालूम दिल भी ग़ाएब है आज पहलू से जाने होगा कहाँ नहीं मालूम वो सितम-गर भी हाल पर मेरे कब हुआ मेहरबाँ नहीं मालूम मुझ को जोश-ए-जुनूँ ने ए 'अहमद' ला के छोड़ा कहाँ नहीं मालूम