क्या कहा आशिक़ी से क्या हासिल तू बता ज़िंदगी से क्या हासिल ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ भी ज़रूरी है वर्ना इस बंदगी से क्या हासिल रास्ते ही न जाएँ मंज़िल को फिर तिरी रहबरी से क्या हासिल कितनी सदियों से सह रहे हैं ग़म दो घड़ी की ख़ुशी से क्या हासिल सिर्फ़ दिल का ग़ुबार है 'साहिल' वर्ना इस शायरी से क्या हासिल