क्या कहें आलम-ए-शबाब की बात मो'तबर होती कब है ख़्वाब की बात झड़ गई शेख़ी अब्र की जिस दम चल पड़ी दीदा-ए-पुर-आब की बात दीजे दम उस को हज़रत-ए-नासेह जानता जो न हो जनाब की बात है ये और आह उस का कूचा है क्या कहूँ इस दिल-ए-ख़राब की बात लाख पर्दा किया मगर न छुपी आह मजनून-ए-दिल-कबाब की बात रंग है ज़र्द मुँह पे ख़ुश्की है मुँह से निकले है पेच-ओ-ताब की बात आज कुछ बे-क़रार से हो तुम कहीं छुपती है इज़्तिराब की बात चल पड़ी बज़्म-ए-मय-कशाँ में जब निगह-ए-चश्म-ए-मस्त-ख़्वाब की बात हो गए बस नशे हरन सब के न रही ख़ाक कुछ शराब की बात सच कहो किस से दिल लगा है 'ऐश' नहीं यारों से ये हिजाब की बात