मैं ने कुछ और कहा उस ने सुना और से और था सवाल और जवाब उस ने दिया और से और ऐसा बहरूप बदलते नहीं देखा हम ने बन गया आइना पाते ही सफ़ा और से और खींच लाएगी मिरे घर उसे ऐ हम-नफ़सो आह की आज वो पल्टी है हवा और से और इस तरह रंग बदलता है ज़माना दम दम रंग जिस तरह बदलती है हिना और से और ये ग़ज़ल जिस ने सुनी उस ने कहा वाह जी वाह 'ऐश' क्या ख़ूब बिठाया है बजा और से और