क्या कहें किस से प्यार कर बैठे अपने दिल को फ़िगार कर बैठे सब्र की इक क़बा जो बाक़ी थी उस को भी तार तार कर बैठे आज फिर उन की आमद आमद है हम ख़िज़ाँ को बहार कर बैठे वाए उस बुत का वा'दा-ए-फ़र्दा उम्र भर इंतिज़ार कर बैठे ख़ुद जो ग़म हैं तो आइना हैराँ किस ग़ज़ब का सिंघार कर बैठे हम तही-दस्त तुझ को क्या देते जान तुझ पर निसार कर बैठे