क्या कहीं मिलता है क्या ख़्वाबों में दिल घिरा रहता है महताबों में हर तमन्ना-ए-सुकून-ए-साहिल उलझी उलझी रही सैलाबों में दिल-ए-इंसाँ की स्याही तौबा ज़ुल्मतें बस गईं महताबों में आप के फ़ैज़ से तनवीरें हैं का'बा-ए-इश्क़ की मेहराबों में अपना हर ख़्वाब था इक मौज-ए-सुरूर यूँ हुई उम्र बसर ख़्वाबों में हुस्न-ए-क़िस्मत से हमेशा 'फ़ितरत' बख़्त बेदार रहा ख़्वाबों में