क्या कहूँ उन की निगाह-ए-फ़ित्ना-ए-ज़ा क्या कह गई लब तक आते आते दिल की बात दिल में रह गई ताब-ए-नज़्ज़ारा थी किस को जब वो आए बे-नक़ाब दीद की एक एक रुत तो दिल में घुट कर रह गई कट गई शब रोते रोते इंतिज़ार-ए-यार में आरज़ू एक एक दिल की अश्क बन कर बह गई आप से लब पर शिकायत भी कभी आई कहो गो मिरी जान-ए-हज़ीं सदमे हज़ारों सह गई सर गया तो क्या हुआ हम मिट गए तो क्या 'नरेश' आबरू तो कूचा-ए-क़ातिल में अपनी रह गई