क्या करेगा जा के बैतुल्लाह तू दिल ही से कर अपनी पैदा राह तू डूब जा बहर-ए-अमीक़-ए-इ'श्क़ में यूँ न हरगिज़ ले सकेगा थाह तू घर से निकलेगा वो अपनी रात को मत निकलिए देखियो ऐ माह तू का'बा ढह जावे तो बन सकता है फिर देखिए दिल है इसे मत ढाह तू हाल-ए-दिल थोड़ा सा सुन कर बोल उठा बस अब इस क़िस्से को कर कोताह तू यार के दिल तक असर के साथ जा आसमाँ तक जा न जा ऐ माह तू वाजिबुत्ता'ज़ीर है 'रासिख़' प हैफ़ क़द्र से उस की नहीं आगाह तू