क्या कहूँ कैसे करिश्मे देखे मैं ने आवाज़ के साए देखे मेरी हिजरत ही न लिक्खी हो कहीं मैं ने ख़्वाबों में परिंदे देखे तेरी आँखों में थे जुगनू रक़्साँ अपनी पलकों पे सितारे देखे मैं ने जाते हुए देखा तुझ को तुझ को तकते हुए रस्ते देखे जिन की पलकों पे सहीफ़े उतरें मैं ने कुछ ऐसे भी चेहरे देखे वस्ल वालों की अज़िय्यत देखी हिज्र वालों के सलीक़े देखे मुस्कुराहट नहीं देखी मेरी तू ने बस पाँव में छाले देखे जिस ने माथे पे रखी हों आँखें वो कोई आदमी कैसे देखे जिस ने देखा न हो दरवेश 'सफ़ी' वो मिरे घर कभी आए देखे