ख़ुद ही चल कर तो मिरे पास वो आने से रहा मैं भी अब अपनी अना छोड़ के जाने से रहा मेरी आँखों में चराग़ाँ है यही काफ़ी है तेरे क़दमों में नए फूल बिछाने से रहा तुम उसे जा के कहो आ के मनाए मुझ को ख़ुद से रूठा हूँ तो मैं ख़ुद को मनाने से रहा आस्तीनों से कहो अपनी हिफ़ाज़त कर लें यार साँपों से तो मैं इन को बचाने से रहा राएगानी का सफ़र मुझ से नहीं हो सकता अब मोहब्बत में नया रंज उठाने से रहा आबला-पाई भी गुलशन है मुझे दश्त-मिज़ाज ज़ख़्म महके हैं तो फूलों को दिखाने से रहा दिल में घाव ही सही तल्ख़ तबीअ'त भी सही अपने यारों पे तो मैं हाथ उठाने से रहा रेत भी चूमती रहती है मिरे पाँव 'सफ़ी' मैं समंदर को तो मंज़र ये दिखाने से रहा