क्या कहूँ ख़ामोश दरिया से मैं पानी के लिए मौज ही राज़ी नहीं कोई रवानी के लिए लग गए रंग-ए-हुनर सब एक ही तस्वीर में फिर कोई सूरत न निकली नक़्श-ए-सानी के लिए सोचता हूँ मैं भी देखूँ दिल के आईने में अब कितनी गुंजाइश है अक्स-ए-कामरानी के लिए कोई गर पूछे तो क्या बतलाईए जाते हुए हम ने तो कुछ भी नहीं छोड़ा निशानी के लिए सामने उस शो'ला-रू के जल सके किस का चराग़ चाँद सूरज भी हैं जिस की पासबानी के लिए