क्या करे हाल-ए-दिल बयाँ कोई न रहा ज़ेब-ए-दास्ताँ कोई फिर है क़ल्ब-ओ-नज़र में यकसूई काश आ जाए ना-गहाँ कोई आँख शबनम की देखती है किसे चाँदनी में हुआ जवाँ कोई शहर से दूर दिन का फूल खिला दश्त में भी है गुलिस्ताँ कोई दिल भी हमराज़-ए-आरज़ू निकला अब नहीं अपना राज़-दाँ कोई छोड़ दुख-सुख की मंज़िलों का तवाफ़ दिल मियाँ ढूँड आस्ताँ कोई दूर अपनों से हो रहे हैं लोग देखिए कब मिले कहाँ कोई