क्या करे कोई चारागर यारो हर असर जब हो बे-असर यारो हम समझते हैं ज़ीस्त में हम ने ज़ख़्म खाए हैं किस क़दर यारो इस से पहले कि बिजलियाँ फूंकें फूँक दो बिजलियों के घर यारो सरफ़राज़ी हमें न मिल पाती हम न चढ़ते जो दार पर यारो बच सकेंगे कहाँ पड़ोसी भी जल तो जाएगा मेरा घर यारो फ़ैसला हो चुका जो होना था अब ये क्या है अगर-मगर यारो तुम को मंज़िल कभी न मिल पाती हम न बनते जो राहबर यारो तुम ही मुंसिफ़ हो फ़ैसला कर दो पेश हैं ज़ेर और ज़बर यारो बे-रुख़ी हम से आख़िरश कब तक अब तो हम पर भी इक नज़र यारो हम सज़ा-वार-ए-हर-सज़ा यूँ हैं बन सके हम न ख़ुद-निगर यारो आइना कर गए हैं 'हैरत' को हज़रत-ए-'अब्र' और 'क़मर' यारो