हम ख़ुशी पा के ग़म को भूल गए फ़र्क़-ए-सहबा-ओ-सम को भूल गए जब हुए आश्ना-ए-लज़्ज़त-ए-ग़म तल्ख़ी-ए-ज़हर-ए-ग़म को भूल गए उन के लुत्फ़-ओ-करम के मारे हुए उन के जौर-ओ-सितम को भूल गए चश्म-ए-साक़ी से जब निगाह मिली बादा-कश जाम-ए-जम को भूल गए फिर कोई और कीजिएगा सितम देखिए लोग हम को भूल गए हम सितम-कोश बन गए तो वो अपने तर्ज़-ए-सितम को भूल गए रास आई है कब ख़ुशी उन को जो ख़ुशी पा के ग़म को भूल गए ऐसे मिलते हैं अजनबी की तरह जैसे सच-मुच वो हम को भूल गए उन का दर मिल गया तो ऐ 'हैरत' हम भी दैर-ओ-हरम को भूल गए