क्या करूँ कुछ भी समझ आता नहीं वो ख़यालों से मिरे जाता नहीं क्या ख़बर चेहरा कहाँ वो खो गया ख़्वाब में भी जो नज़र आता नहीं रात जुगनू चाँद-तारों का हुजूम दिल परेशाँ चैन क्यूँ पाता नहीं कोई सूरज अपने दामन में लिए ख़्वाब-ए-फ़र्दा का निशाँ आता नहीं बर्फ़ ज़ेहनों में जमी है इस क़दर हादसों का डर भी गर्माता नहीं इस क़दर धुँदला गया है आइना कोई भी चेहरा नज़र आता नहीं किस लिए उन के तसव्वुर का तिलिस्म अब दिल-ए-'मुश्ताक़' बहलाता नहीं