क्या कशिश अल्लाह रे दुनिया-ए-आब-ओ-गिल में है ता-अबद जीने की ख़्वाहिश हर बशर के दिल में है बीत जाए क्या ख़ुदा जाने जहान-ए-शौक़ पर वो तो कहिए लैला-ए-हुस्न-ए-अज़ल महमिल में है कुछ हमीं पहचानते हैं रू-ए-ताबाँ को तिरे ज़िक्र तेरे हुस्न का कहने को हर महफ़िल में है काश ये खुल जाए तुझ पर ऐ असीर-ए-आब-ओ-गिल इक सुरूर-ए-बे-कराँ तस्ख़ीर-ए-आब-ओ-गिल में है कोई महरम ही नहीं जब राज़-हा-ए-इश्क़ का हम किसी को क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है इश्क़ ने तय कर लिए हफ़्त-आसमाँ मुद्दत हुई अक़्ल-ए-नादाँ गुम अभी तक जादा-ए-मंज़िल में है रहज़न-ए-होश-ओ-ख़िरद है ये जहान-ए-रंग-ओ-बू ख़ुद से बेगाना है 'साबिर' जो भी इस महफ़िल में है