मय भी है साग़र भी है साक़ी भी पैमाना भी है देखना ये है कि हम में ज़ौक़-ए-रिंदाना भी है रक़्स-ए-परवाना भी देख ऐ चश्म-ए-इबरत ये भी देख शम्अ की आग़ोश में कुछ ख़ाक-ए-परवाना भी है हम ने माना है सुकूँ दामान-ए-साहिल में मगर फ़ितरत-ए-अहल-ए-जुनूँ तूफ़ाँ से टकराना भी है ऐ तलबगार-ए-मसर्रत ये भी सोचा है कभी इक मसर्रत अपने दिल को ग़म से बहलाना भी है जिस ने जो चाहा उसे समझा किया ऐ हम-नशीं ज़िंदगानी इक हक़ीक़त भी है अफ़्साना भी है अहल-ए-दिल के वास्ते है बहर-ए-ऐश-ओ-इम्बिसात गो ब-ज़ाहिर बज़्म-ए-हस्ती एक ग़म-ख़ाना भी है दो घड़ी ऐ गर्दिश-ए-अय्याम बस रुक जा यहीं साक़ी-ए-रा'ना भी है गर्दिश में पैमाना भी है जल्वा-आरा ज़र्रे ज़र्रे में है नूर-ए-बर्क़-ए-तूर लेकिन ऐ 'साबिर' कहीं ज़ौक़-ए-कलीमाना भी है