क्या क़यामत है ग़म की गीराई हँसना चाहा तो आँख भर आई उन की यादों की जल्वा-आराई कितनी रौशन है शाम-ए-तन्हाई मर्हबा ऐ जुनूँ की रुस्वाई उन के होंटों पे भी हँसी आई किस की आमद की है ख़बर यारब दिल की धड़कन बनी है शहनाई कोई जादा न कोई मंज़िल है ज़िंदगी किस मक़ाम पर आई लब पे मोहर-ए-सुकूत है लेकिन मिल गई है नज़र को गोयाई अब 'मुबारक' की ज़िंदगी क्या है उन की याद और कुंज-ए-तन्हाई