क्या ख़बर थी इश्क़ में ऐसा भी इक दौर आए है बात कैसी साँस लेता हूँ तो जी घबराए है रहम कर जज़्ब-ए-मोहब्बत ये सितम क्यों ढाए है हुस्न और बेताब-ओ-हैराँ किस से देखा जाए है यूँ तो उन की याद से मिलती है तस्कीन-ए-हयात और जब तड़पाए है ज़ालिम बहुत तड़पाए है ख़ुश्क आँखें मुस्कुराते होंट चेहरा मुतमइन यूँ भी अक्सर दास्तान-ए-ग़म सुनाई जाए है और तो क्या ज़िंदगी का होश तक छोड़ा नहीं लूटने वाले कहीं ऐसे भी लूटा जाए है रंग-ए-गुलशन देखने वाले कभी ये भी तो देख नन्ही नन्ही पत्तियों में कौन रस दौड़ाए है इश्क़ के मारे हुए दुनिया को देखें भी तो क्या जब नज़र उठती है कोई सामने आ जाए है हुस्न छुपता फिर रहा है मुख़्तलिफ़ पर्दों में 'कैफ़' इश्क़ की ज़ालिम नज़र के सामने कौन आए है