ले चलो मुझ को उस आईना-ए-रुख़्सार के पास ख़ाक उस ज़ीस्त पे जो यार न हो यार के पास नर्गिस-ए-चश्म का मत रख दिल-ए-रंजूर ख़याल या'नी बीमार को रखते नहीं बीमार के पास सर मिरा तन से अगर दूर किया सर सदक़े रखियो क़ातिल तो मुझे अपनी ही दीवार के पास चश्म-ए-मस्त उस की से आख़िर को होई हम भी ख़राब है यही उस की सज़ा बैठे जो मय-ख़्वार के पास यूँ ख़याल उस का सर-अफ़राज़ करे है 'मारूफ़' शह क़दम-रंजा करे जूँ कसू नादार के पास