क्या ख़बर थी ये मोहब्बत का नतीजा होगा रात-दिन दर्द-ए-जुदाई में तड़पना होगा यार की दीद जो तक़दीर में होगी होगी यार का वस्ल मुक़द्दर में जो होगा होगा जान तो सैकड़ों की तू ने निकाली होगी मगर अरमान किसी का न निकाला होगा मेरे रोने पे ख़ुशामद से ये कहना उन का चुप रहो चुप रहो देखो कोई रुस्वा होगा हूँ वो मय-नोश न छूटेगी सर-ए-महशर भी साग़र इक हाथ में इक हाथ में मीना होगा वक़्त-ए-रुख़्सत जो कहा मैं ने मिलोगे तुम कब किस शरारत से कहा हश्र में मिलना होगा तुम जिसे अपना समझते हो उसे ऐ 'साबिर' कब हुआ है वो किसी का जो तुम्हारा होगा