क्या कोई गंज-ए-गिराँ-माया छुपा है मुझ में खोजने वाले तो क्या खोज रहा है मुझ में मैं तो ख़ामोश हूँ हालात की सफ़्फ़ाकी पर जाने फिर कौन है जो चीख़ रहा है मुझ में जिस से हो पाई न ता-हाल शनासाई मिरी लोग कहते हैं कि इक ज़ेहन-ए-रसा है मुझ में फिर मसाइल के यज़ीद आए हैं बै'अत लेने गर्म फिर मा'रका-ए-कर्ब-ओ-बला है मुझ में दोस्तो मुझ को खँगालोगे कहाँ तक आख़िर मा-सिवा-कर्ब भला दूसरा क्या है मुझ में न कोई दर्द न एहसास न जज़्बा न उमंग ये भी 'राही' कोई जीने की अदा है मुझ में