ख़ुश्क हैं ये सभी समुंदर चल तिश्नगी हो गई मुक़द्दर चल रोग मत आश्नाइयों के बढ़ा छोड़ आवारगी मियाँ घर चल ज़र्रा-ज़र्रा न ख़ुद बिखर ऐसा जम्अ कर अपने आप को घर चल हैं हक़ाएक़ के मरहले दरपेश अपने ख़्वाबों का बाँध बिस्तर चल पेट के मसअले बुलाते हैं कार-ख़ाने दुकान दफ़्तर चल ज़िंदगी रास्ता है शो'लों का दामन-ए-आफ़ियत बचा कर चल भूल मत अपनी हैसियत 'राही' अपनी हद्द-ए-रसा के अंदर चल