क्या क्या दिए हैं ज़ीस्त ने ग़म कुछ न पूछिए कितने किए गए हैं करम कुछ न पूछिए आँखों में अश्क लब पे तबस्सुम जिगर में सोज़ कैसे रखा है ग़म का भरम कुछ न पूछिए इक पैकर-ए-हसीं की परस्तिश के वास्ते क्या क्या तराशे हम ने सनम कुछ न पूछिए इस दौर-ए-इब्तिला में ब-ईं-अक़्ल-ओ-आगही बेचारगी-ए-अहल-ए-क़लम कुछ न पूछिए पहुँचा कहाँ कहाँ मैं ख़ुदा की तलाश में ऐ नाज़िरीन-ए-दैर-ओ-हरम कुछ न पूछिए इन दोनों मंज़िलों से ज़रा सोचता हूँ मैं मुझ से मिरा वजूद-ओ-अदम कुछ न पूछिए इस मुख़्तसर सी ज़ीस्त में 'बासित-अज़ीम' ने क्या क्या उठाए बार-ए-अलम कुछ न पूछिए