क्या क्या न किया इश्क़ में क्या क्या न करेंगे लेकिन ग़म-ए-जानाँ तुझे रुस्वा न करेंगे दामन तो भिगो देंगे बहर-हाल मिरे अश्क माना कोई तूफ़ान प बरपा न करेंगे इस तर्क-ए-तमन्ना में भी शामिल है तमन्ना जब ये है तो फिर तर्क-ए-तमन्ना न करेंगे हर चंद सही मस्लहत-ए-वक़्त मगर हम अपना सर-ए-ख़ुद्दार झुकाया न करेंगे चमकेंगे वही चर्ख़-ए-मोहब्बत पे सितारे जो गर्दिश-ए-अफ़्लाक की परवा न करेंगे जो माँग के लानी पड़ें ग़ैरों के चमन से हम ऐसी बहारों की तमन्ना न करेंगे बदलेंगे वही गर्दिश-ए-अय्याम की तक़दीर जो गर्दिश-ए-अय्याम से बदला न करेंगे तूफ़ाँ जो सफ़ीनों को डुबो देते थे अक्सर क्या अब वो सफ़ीनों को डुबोया न करेंगे क्यों मश्क़-ए-सितम के लिए आईन तराशो हम तुम से किसी जौर का शिकवा न करेंगे