क्या मज़ा हो जो किसी से तुझे उल्फ़त हो जाए जी कुढ़े फ़िक्र रहे मेरी सी हालत हो जाए तेरा बीमार दम-ए-नज़अ ये माँगे था दुआ देख लूँ फिर उसे गर थोड़ी सी मोहलत हो जाए जाइयो मत तू सबा बाग़ से ज़िंदाँ की तरफ़ मुझ को डर है न असीरों पे क़यामत हो जाए ऐ दिल इक दिन तू गुज़र कर तरफ़-ए-अहल-ए-क़ुबूर ता-कि देखे से उन्हों के तुझे इबरत हो जाए देख तस्वीर को मजनूँ की 'हवस' रश्क न कर चाहिए इश्क़ में तेरी भी ये सूरत हो जाए