क्या नज़ारा था मेरी आँखों में जब वो सारा था मेरी आँखों में एक तूफ़ान था कहीं बरपा और धारा था मेरी आँखों में हाल कैसा ये तू ने कर डाला कितना प्यारा था मेरी आँखों में कुछ भी देखा नहीं था मैं ने जब हर नज़ारा था मेरी आँखों में चाँद जब तक नज़र न आया था तारा तारा था मेरी आँखों में जब किया इश्क़ का सफ़र आग़ाज़ कब किनारा था मेरी आँखों में कितनी आँखों से 'शाज़' बचते हुए कोई हारा था मेरी आँखों में