क्या सोचते रहते हो तस्वीर बना कर के क्यूँ उस से नहीं कहते कुछ होंट हिला कर के घर उस ने बनाया था इक सब्र ओ रज़ा कर के मिट्टी में मिला डाला एहसान जता कर के जो जान से प्यारे थे नाम उन ने ही पूछा है हैरान हुआ मैं तो इस शहर में आ कर के तहज़ीब-ए-मुसल्ला से वाक़िफ़ ही न था कुछ भी और बैठ गया देखो सज्जादे पे आ कर के मुद्दत से पता उस का मालूम नहीं कुछ भी मशहूर बहुत था जो आशुफ़्ता-नवा कर के