क्या तिरे दिल में ऐ बुत हों दिल-ओ-जाँ महफ़ूज़

क्या तिरे दिल में ऐ बुत हों दिल-ओ-जाँ महफ़ूज़
न कोई दीन है महफ़ूज़ न ईमाँ महफ़ूज़

बंद दरवाज़े भी उस के लिए खुल जाते हैं
मौत के वास्ते है काख़ न ऐवाँ महफ़ूज़

चश्म-ए-काफ़िर ने तिरी खो दिए सब के ईमान
क्या ज़माने में रहे कोई मुसलमाँ महफ़ूज़

मौसम-ए-गुल में क़सम है तुझे ऐ दस्त-ए-जुनूँ
रहने पाए न कोई जैब-ओ-गरेबाँ महफ़ूज़

अश्क क्यों महफ़िल-ए-अग़्यार में बर्बाद किए
तेरे मोती न रहे दीदा-ए-गिर्यां महफ़ूज़

मौसम-ए-गुल में हम ऐ बाद-ए-ख़िज़ाँ समझे थे
तेरे झोंकों से रहेगा न गुलिस्ताँ महफ़ूज़

उन के दीवानों की वहशत का जो आलम है यही
रहने पाएगा न दामान-ए-बयाबाँ महफ़ूज़

दे गई बाद-ए-सबा हम से परेशानों को
तेरी निगहत न रही गेसू-ए-जानाँ महफ़ूज़

हम से दीवाने भी आए हैं ख़ुदा ख़ैर करे
ऐ क़यामत न रहेगा तिरा दामाँ महफ़ूज़

ऐ ख़ुदा तेरी ख़ुदाई में ये क्या क्या करता
मौत के ख़ौफ़ से होता अगर इंसाँ महफ़ूज़

नाम रह जाएगा 'नौशाद' जहाँ में कुछ दिन
बाद मेरे जो रहेगा मिरा दीवाँ महफ़ूज़


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close