क्यों बुझा सा लगता है By Ghazal << पूरे चाँद की रात भी हो ख़याल-ए-यार को हर-वक़्त र... >> क्यों बुझा सा लगता है दिल दुखा सा लगता है फिर नज़र न आएगा हम-नवा सा लगता है यूँ तो वो नहीं कोई आसरा सा लगता है वो ख़ुलूस-मंदी में इक दुआ सा लगता है अपनी कामरानी से सर उठा सा लगता है Share on: