पूरे चाँद की रात भी हो हात में तेरा हात भी हो जब मैं बोलूँ महफ़िल में चुप से बेहतर बात भी हो इश्क़ हो अपनी ज़ात तो फिर उस में क्यूँकर मात भी हो सब कुछ तेरे बस में कब मरहून-ए-हालात भी हो चाहत है उस की बुनियाद ख़्वाह कोई सौग़ात भी हो सफ़र हो जब तन्हाई का उम्र से लम्बी रात भी हो दस्त-ए-दुआ' के साथ 'आमिर' आँखों से बरसात भी हो