क्यों फ़र्क़ किए बैठे हो इस का है सबब क्या हैं अस्ल में सब एक अजम क्या है अरब क्या मुमकिन हो अगर तुम से तो किरदार सँवारो काम आता है महशर में कोई नाम-ओ-नसब क्या तू ने नज़र-अंदाज़ क्या हम को हमेशा हम ने तिरी महफ़िल को जो छोड़ा तो अजब क्या ये मौसम-ए-गुल माना कि तस्कीं का सबब है ढाता तुम्हें मौसम यही इस दिल पे ग़ज़ब क्या एहसास-ए-तमन्ना ही मिरे दिल से मिटा दो जब ग़म नहीं मतलूब तो ख़ुशियों की तलब क्या फिर हम से कोई 'ताज' यही पूछ रहा है बर्बादी-ए-गुलशन में है पोशीदा सबब क्या