क्यों होने लगे दिल में ये रंज-ओ-मेहन पैदा यूँ होने लगी मेरे सीने में जलन पैदा क्यों टीस सी उठती है रह रह के मिरे दिल में क्यों है ये ख़लिश आख़िर क्यों है ये चुभन पैदा माइल है सितम पर क्यों कुछ लुत्फ़ उठाने दे फिर होंगे न दुनिया में ऐ चर्ख़-ए-कुहन पैदा 'सौदा' है न 'इंशा' है 'ग़ालिब' है न 'अकबर' है हों हिन्द में फिर ऐसे अर्बाब-ए-सुख़न पैदा दावा-ए-ग़ज़ल-गोई करता है अगर 'कामिल' शागिर्द किसी का हो गर मश्क़-ए-सुख़न पैदा