क्यों इल्तिजा-ए-शौक़ सर-ए-बज़्म की गई सुनना तो दरकिनार यहाँ बात भी गई पास-ए-हिजाब-ए-हुस्न हमेशा रहा मुझे दिल के ख़मोश साज़ से आवाज़ दी गई नग़्मों को सुन के भी मिरे आँसू टपक पड़े मुझ से मिरी तमाम ख़ुशी छीन ली गई मैं सज्दा कर रहा हूँ ख़ुद अपने ही अक्स को क्या उन के साथ में मिरी तस्वीर ली गई कुछ कह रहा था दावर-ए-महशर के सामने दुज़्दीदा इक नज़र मिरे होंटों को सी गई मैं वो कि तुम पे कर दी फ़िदा दिल की काएनात तुम वो कि एक लम्हा तसल्ली न दी गई आप आए बहर-ए-पुर्सिश-ए-अहवाल शुक्रिया क्यों ग़म-नसीब के लिए तकलीफ़ की गई 'जौहर' अज़ल के रोज़ जो बटने लगे नक़ीब इक बेवफ़ा से मेरी मोहब्बत लिखी गई