कुछ इस अदा से बज़्म में वो जल्वा-गर है आज आलम ये है कि दिल ही रक़ीब-ए-नज़र है आज अल्लह रे हुस्न-ए-यार की ये सेहर-कारियाँ हर शय मिरी नज़र में फ़रेब-ए-नज़र है आज ज़ौक़-ए-नुमूद-ए-शौक़ का अल्लह रे इर्तिक़ा तेरी नज़र में मेरी तपिश जल्वा-गर है आज हुस्न-ए-बहार नावक-ए-मिज़्गाँ के मैं निसार कैसा हरा-भरा मिरा ज़ख़्म-ए-जिगर है आज क्यों कर रहे हो जल्वा-गह-ए-आम की तलाश मंज़ूर क्या इहानत-ए-अहल-ए-नज़र है आज