क्यों कहा पास तिरे आइना-ए-दिल न रहे क्या ये ख़्वाहिश है कोई तेरा मुक़ाबिल न रहे तालिब-ए-दर्द को मतलूब है सामान-ए-तपिश नश्तर-ए-ग़म रहे पहलू में अगर दिल न रहे उन की ये ज़िद है निराली कि मिरे सीने में दिल-ए-वारफ़्ता रहे आरज़ू-ए-दिल न रहे हाथ बिस्मिल ने बढ़ाया है लिपट जाने को कि कफ़न बन के रहे दामन-ए-क़ातिल न रहे रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत को हिदायत ये है जादा-पैमाई रहे हसरत-ए-मंज़िल न रहे ख़ाना-ए-दिल में उतरने का ये मतलब ठहरा मेहमाँ बन के रहे ख़ंजर-ए-क़ातिल न रहे क़त्ल-ए-उश्शाक़ से क़ातिल का ये मतलब तो नहीं ग़ायत-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा उक़्दा-ए-मुश्किल न रहे दे के जाँ इस लिए लेता हूँ सुकून-ए-ख़ातिर दाइमी बन के रहे दौलत-ए-आजिल न रहे क्यों ख़फ़ा होते हो दीवानों की ख़्वाहिश ये है नग़्मा-ए-इश्क़ बने शोर-ए-सलासिल न रहे नज़्र-ए-ग़म इस लिए की जान-ए-हज़ीं 'बेदिल' ने उस की गर्दन पे कहीं मिन्नत-ए-क़ातिल न रहे