माइल उस बुत का जिधर तीर-ए-नज़र होता है सूरत-ए-क़िबला-नुमा दिल भी उधर होता है दर्द सीने में कहाँ और किधर होता है ये तो हम कह नहीं सकते हैं मगर होता है मुतमइन आप रहें ख़ौफ़ की कुछ बात नहीं कहीं आशिक़ के भी नालों में असर होता है दिल हुआ जाता है जौलाँ-गह-ए-यास-ओ-हिरमाँ देख किस तरह से वीराँ तिरा घर होता है मेरी तदबीर पे हँस देती है तक़दीर मिरी नाला जिस वक़्त कि जूया-ए-असर होता है तुझ को डर क्या है मिरा क़िस्सा-ए-ग़म सुन तो सही कहीं आशिक़ के बयाँ में भी असर होता है जागुज़ीँ होता है इक दिल में कोई पर्दा-नशीं या'नी अब रश्क-ए-दो-सद काबा ये घर होता है रहम क्यों आए उन्हें सुन के हमारा नामा कब सियह-बख़्तों के रोने में असर होता है वाइ'ज़ो काबा की तारीफ़ से साबित ये हुआ कि सनम-ख़ाना ही अल्लाह का घर होता है बर्ग-हा-ए-गुल-ए-तरि कैसे बिखर जाते हैं गिर्या-ए-ए-बुलबुल-ए-नालाँ में असर होता है ज़ाहिद-ए-गोशा-नशीं कब उसे पहचान सका वही आरिफ़ है जिसे ज़ौक़-ए-नज़र होता है शब को सब लोगों से पोशीदा जनाब-ए-'बेदिल' आप का जाना ये हर रोज़ किधर होता है