क्यों ख़यालों में यार आता है दिल-ए-बेताब रुक सा जाता है चश्म-ए-गिर्यां से चश्म-ए-यार तलक तार अश्कों का बन सा जाता है क्या उजालों से फ़ाएदा उस को जो अँधेरों से फ़ैज़ पाता है गुफ़्तुगू उस से की तो थी मैं ने हर्फ़-ए-मतलब ज़बाँ पे आता है वो ही पाएगा मंज़िलों का सुराग़ गर्द राहों में जो उड़ाता है दिल तड़पता है जब भी शाइ'र का रंग-ए-महफ़िल तरंग पाता है किस से कहता है मुद्दआ' अपना किस को ग़म अपना तू सुनाता है