क्यों किसी को ढूँडते हो हाथ में ले कर चराग़ अब कहाँ वो गाँव होते थे जहाँ घर घर चराग़ देखना उस को अगर है इन चराग़ों को बुझाओ कैसे देखोगे उसे तुम सामने रख कर चराग़ मैं ने चुपके से कही अब बात उस के कान में उस ने अपने हाथ से गुल कर दिया हँस कर चराग़ अब जो लौटा हूँ तो सब हैरत से तकते हैं मुझे जाम-ओ-मीना गुंबद-ओ-मेहराब बाम-ओ-दर चराग़ आज तो उन की नज़र के वास्ते सौ रंग हैं कल परिंदों के लिए होते थे बाल-ओ-पर चराग़ शब तो अंधी है रहेगी उम्र भर अंधी 'मतीन' या जलो तुम शाम से या फिर जलें दिन भर चराग़