क्यों मुब्तला-ए-इश्क़ को रुस्वा करे कोई उस रश्क-ए-गुल की कैसे तमन्ना करे कोई कोई हसीन शाम-ओ-सहर देखता रहे गुज़रे हुए ज़माने को देखा करे कोई अल्लाह ने ये साफ़ कहा है क़ुरआन में काफ़िर कहो जो ग़ैर को सज्दा करे कोई लहजा है नर्म ऐसा कि दुश्मन हुआ है दोस्त फिर किस तरह से उस से किनारा करे कोई दिल में मिरे लिए जो ख़ुलूस-ओ-वफ़ा नहीं आख़िर 'सईद' कैसे गुज़ारा करे कोई