शब-ए-फ़िराक़ जो गुज़री बयाँ नहीं करते पराई बात है उस को अयाँ नहीं करते हमेशा ज़िक्र-ए-बहाराँ लबों पे रहता है ख़िज़ाँ की बात कभी बाग़बाँ नहीं करते हैं ऐसे लोग जो मर जाते हैं वफ़ा के लिए वफ़ा-परस्ती को लेकिन बयाँ नहीं करते ख़मीर में मिरे शामिल है ख़ाकसारी 'सईद' कभी ज़मीन को हम आसमाँ नहीं करते