क्यों न ऐ दिल जफ़ा करे कोई रस्म-ए-उल्फ़त है क्या करे कोई लाख नाला किया करे कोई नहीं मुमकिन रिहा करे कोई जब न बाक़ी हो क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ क्या सितम है रिहा करे कोई मरज़-ए-इश्क़ का इलाज नहीं क्या दिल-ए-मुब्तला करे कोई देख ले तुझ को फिर कहाँ मुमकिन ख़्वाहिश-ए-मासिवा करे कोई ज़ब्त-ए-ग़म का हमें भी दा'वा है है जो ज़ालिम हुआ करे कोई दर्द-ए-उल्फ़त है ज़िंदगी मेरी ये समझ कर दवा करे कोई ज़ात-ए-वाहिद है पैकर-ए-इंसाफ़ उस की तारीफ़ क्या करे कोई जल्वा-फ़रमा कहाँ नहीं वो 'सलीम' दीदा-ए-दिल तो वा करे कोई