क्यों निगाह-ए-रहम की तू ने दिल-ए-नाकाम पर इक मंज़र यास का था वो भी वीराँ हो गया कल तमन्ना पर तिरी सदक़े किए थे दो जहाँ आज दिल तेरी तमन्ना पर पशेमाँ हो गया अल्लह अल्लह कुफ़्र-ए-उल्फ़त के यक़ीं की वुसअ'तें जो ख़याल आया मिरे दिल में वो ईमाँ हो गया बढ़ गई ख़ुद्दारी-ए-साइल तिरे इंकार से ख़ुद तिरा दस्त-ए-करम अब मेरा दामाँ हो गया