ख़ुदा जाने दिल को मिरे क्या हुआ है तुम्हीं से ख़फ़ा है तुम्हीं पर फ़िदा है तग़ाफ़ुल ही अंजाम से अपने बेहतर तिरी बे-रुख़ी से मिरी इब्तिदा है मैं ख़ुद मा'नी-ए-हुस्न हूँ ऐ सितमगर मगर कुछ जुदाई में तेरी मज़ा है मिरा दिल है मरकज़ तुम्हारे सितम का किसी पर किया तुम ने मुझ पर हुआ है मैं इस दौर-ए-हस्ती में वो दायरा हूँ कि हर इंतिहा पर मिरी इब्तिदा है न कुछ कह सका मैं न समझे वही कुछ बहुत देर सोचा कि क्या मुद्दआ' है मुझे अपने होने के हैं लाख शिकवे किया तुम से शिकवा ये अपना गिला है है मरदूद-ए-दैर और का'बे से फ़ारिग़ न मोमिन न काफ़िर ये दिल क्या बला है मैं हर फ़लसफ़े की हक़ीक़त हूँ 'मैकश' मैं जिस में नहीं फ़ल्सफ़ा ही वो क्या है