क्यों रोइए जो नाला-ए-दिल-ए-ना-रसा हुआ ये सोचिए कि जज़्ब-ए-मोहब्बत को क्या हुआ सूरत ये है कि मुझ में वो जल्वा-नुमा हुआ हैरत ये है कि मेरी निगाहों को क्या हुआ पूरा तक़ाज़ा-ए-ख़लिश-ए-मुद्दआ' हुआ जब जान दी तो फ़र्ज़-ए-मोहब्बत अदा हुआ शामिल है क़ैद-ए-इश्क़ में आज़ादीयों की रूह अब क्या कहूँ असीर हुआ या रिहा हुआ क़ैदी सही जुनून-ए-तमन्ना को क्या करूँ फिरता हूँ अपने दिल में तुम्हें ढूँढता हुआ दिल में सिवाए हसरत-ए-पामाल कुछ नहीं इस घर में इक चराग़ है वो भी बुझा हुआ साक़ी ये तेरा ‘शाहिद’-ए-मख़मूर तो नहीं आता है मय-कदे में कोई झूमता हुआ