क्यों तअ'ज्जुब है कि उन के साथ दीवाने गए शम्अ' जिस जानिब गई उस सम्त परवाने गए शैख़ कितने पारसा हैं आज पहचाने गए दिन तो मस्जिद में गुज़ारा रात मयख़ाने गए जब हमें दार-ओ-रसन की गोद में नींद आ गई तब कहीं हम इश्क़ की दुनिया में पहचाने गए उन सफ़ीनों के तसद्दुक़ उन सफ़ीनों को सलाम छोड़ कर साहिल जो तूफ़ानों से टकराने गए अज़्मत-ए-दीवानगी हम ने कहाँ ज़ाहिर न की दार पर भी हम तो इस परचम को लहराने गए कर दिया बदनाम 'नय्यर' इश्क़ के जज़्बात ने मेरी उल्फ़त के ज़माने भर में अफ़्साने गए